Dunki Movie Review – राजकुमार हिरानी ”3इडियट्स” और ”मुन्नाभाई” जैसी कई मजेदार फिल्में दे चुके हैं जो कॉमेडी का लेबल लगाकर धीरे से इमोशन और संदेश देने वाली होती हे , हिरानी के कैमरे के लेंस से इस बार शाहरुख खान नजर आ रहे हैं, ‘डंकी’ का सफर तय करते हुए. जानिए कैसी है ये फिल्म.
अनुभव सिन्हा, राहुल ढोलकिया, इम्तियाज अली और आनंद एल राय की लिस्ट में नया नाम जुड़ा है राज कुमार हिरानी का। ये सूची उन निर्देशकों की है जिन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय सितारे शाह रुख खान को निर्देशित करने का मौका मिला और जिन्होंने इस मौके के अति उत्साह में एक ऐसी कमजोर कहानी पर फिल्म बनाई, जिसका अंत फिल्म के आदि में ही दर्शकों का पता चल जाता है। बीते चार-पांच साल के तमाम म्यूजिक वीडियोज में एक कहानी खूब दिखती है। लड़का और लड़की एक दूसरे से प्रेम करते हैं। लड़की अपने सुंदर भविष्य के लिए लड़के से दूर हो जाती है। कई साल बाद लड़का और लड़की फिर मिलते हैं। लड़की बुरी हालत में है। लड़के का प्यार उसे इस हालत में देख फिर जागता है। और, दोनों फिर मिल जाते हैं। पौने तीन मिनट के म्यूजिक वीडियो की इस कहानी पर अभिजात जोशी और राज कुमार हिरानी के साथ मिलकर कनिका ढिल्लों ने पौने तीन घंटे का रायता फैलाया है और ऐसा फैलाया है कि आखिर तक फिर ये इन तीनों से तो क्या शाहरुख खान से भी समेटते नहीं बना।
क्या है डंकी की कहानी ?
कहानी का आरंभ लंदन में उम्रराज मनु तापसी पन्नू के अस्पताल से भागने से होता है। वह वकील पटेल देवेन भोजानी से भारत का वीजा ना मिलने की स्थिति में हार्डी शाहरुख खान का नंबर निकालने को कहती है। कहानी पंजाब आती है।
25 साल बाद अपने प्रेमी हार्डी को फोन करके दुबई आने के कहती है। मनु अपने दो दोस्तों बुग्गू लखनपाल विक्रम कोचर और बल्ली ,अनिल ग्रोवर से भी लंदन से दुबई साथ चलने को कहती है। वहां से उनके अतीत की परतें खुलनी आरंभ होती हैं। फौज में पदस्थ हार्डी पंजाब के लोल्टू में किसी का सामान लौटाने आया होता है।
उसकी मुलाकात मनु से होती है, जो घर की खस्ता आर्थिक हालत की वजह से इंग्लैंड जाना चाहती है। बल्ली और बुग्गू की भी पारिवारिक दिक्कतें हैं। हार्डी उन्हें आइईएलटी (IELT) परीक्षा में शामिल होने को कहता है, ताकि छात्र वीजा पर वे इंग्लैंड जा सकें, पर सबका अंग्रेजी में हाथ तंग होता है।
वे अंग्रेजी की क्लास ज्वाइन करते हैं, जहां पर सुखी विक्की कौशल लंदन जाने के लिए बेचैन है। घटनाक्रम मोड़ लेते हैं और सुखी आत्मदाह कर लेता है। उसकी मौत हार्डी को झकझोर देती है। वह मनु और बाकी दोस्तों को डंकी रूट से लंदन ले जाने में जुट जाता है।
एक दृश्य में हार्डी कहता है- मेरा देश जैसा है, मेरा है। मैं यहा रहने के लिए अपने देश को गाली नहीं दूंगा। फौजी होने के बावजूद वह यह बात कैसे कह सकता है। उसे तो कहना चाहिए था, मुझे अपने देश पर गर्व है। भले ही शरण न मिले देश को बुरा नहीं कहूंगा।
इंटरवल के बाद शुरू हुई ‘डंकी’
फिल्म ‘डंकी’ का जिस बात को लेकर खूब प्रचार प्रसार हुआ, वह बात फिल्म में इंटरवल तक नदारद रहती है। फिल्म अपना आधार बनाने में इतनी देर कर देती है कि बाद में फिल्म का दूसरा हिस्सा लाख चाहकर भी इसे संभाल नहीं पाता। और, प्रेम धवन के गाने से ही प्रेरित फिल्म में सोनू निगम का गाया जावेद अख्तर का लिखा गाना आते आते फिल्म दर्शकों को इतना बोर कर चुकी होती है कि किसी का इस गाने के बोलों की तरफ ध्यान भी नहीं जाता। राज कुमार हिरानी इस बार अपने चिर परिचित गलियारों से निकलकर पंजाब पहुंचे। वहां के गांव लाल्टू में विदेश जाने के लिए बेताब युवाओं की कहानी में हैरी सिंह ढिल्लों नामक फौजी (जी हां, फिर से फौजी) आता है। वह आता है खुद को बचाने वाले का टेपरिकॉर्डर लौटाने लेकिन यहां के लोगों के सपने पूरे करने के लिए वह यहीं रुक जाता है। एक फौजी अवैध तरीके से इन लोगों को लंदन पहुंचाए, इसके लिए आधार बनाने में फिल्म इतना समय ले लेती है कि असली नमक का स्वाद आने तक आयोडीन ही हवा में उड़ जाता है।
25 साल के अंतराल में उनकी जिंदगी कैसी रही, उसका कोई जिक्र कहानी में नहीं है। सुखी अपनी शादीशुदा प्रेमिका को लंदन से लाना चाहता है, पर लड़की का पिता उससे बात क्यों नहीं करता, उसकी वजह स्पष्ट नहीं है। जब चारों लंदन पहुंचते हैं तो एक कमरे में करीब 25 लोगों के एक साथ रहने का दृश्य झकझोरता नहीं है। अपनी असल स्थिति को घर से छुपाने को लेकर बल्ली का संवाद स्वजनों की आकांक्षाओं को भी दर्शाता है। यह हृदयविदारक दृश्य था, पर उतना प्रभावी नहीं बन पाया। एक कमी यह भी रही कि इनमें कोई भी गांव से निकलकर शहर नहीं आया, जहां वह कोई हाथपांव मारता। फिल्म में गरीबों को वीजा ना मिलने की बात अतार्किक लगती है।
फिल्म में बीच-बीच हल्के फुल्के क्षण हैं जो चेहरे पर मुस्कान लाते हैं। फिल्म को बनाने के पीछे राजकुमारहिरानी की मंशा अच्छी है, लेकिन फिल्म तार्किक नहीं बन पाई है। ये उनकी सबसे कमजोर फिल्म है। डंकी का डंका इस बार बजते बजते रह गया है।